जिनकी मंज़िल प्यारी है वो राह में उलझनों की कब परवाह MOTIVATION SHAYERI

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जिनकी मंज़िल प्यारी है वो राह में उलझनों की कब परवाह

रोकने की ज़रूरत नहीं तहज़ीब - ओ - एहतराम के घरानें से हैं हम अपनी हद जानते हैं -

जिनकी मंज़िल प्यारी है वो राह में उलझनों की कब परवाह करता है ! जिनकी निगाह आस्मां पे है वो ज़मीं की कब देखता है !

ROK NE KI JARORAT NAHI TAHJIB O AEHTRAM KE GAHARA NE SE HAI HAUM APANI HAD JANATE HAI..

JINKI MANJIL PYARI HAI WO RAHA ULJANO KI KAB PARWAHA KARTA HAI JINAKI NIGAHE ASMAN PE HAI WO JAMI KO KAB DEKHTA HAI..
 

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