लिखते हैं , मिटाते हैं फिर लिखते है लफ्ज़ों के दरिया में गोता लगातार अलफाज़ चुनते है जितना पढ़ने में आसान हे रफीक़ लिखना उतना आसान नहीं है अहले क़लम से कोई पुछे वो तहरीर को कैसे कलमबंद करते है
लिखते हैं , मिटाते हैं फिर लिखते है लफ्ज़ों के दरिया में गोता लगातार अलफाज़ चुनते है जितना पढ़ने में आसान हे रफीक़ लिखना उतना आसान नहीं है अहले क़लम से कोई पुछे वो तहरीर को कैसे कलमबंद करते है
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